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Know When is Putrada Ekadashi? जाने शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पुत्रदा एकादशी व्रत कथा Download PDF और महत्व
सावन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) कहा जाता हैं। पुत्रदा एकादशी का व्रत साल भर में दो बार रखा जाता है। पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन और दूसरी पुत्रदा एकादशी व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी के व्रत से संतान की प्राप्ति होती है और संतान के सारे कष्ट दूर होते हैं।
Last updated on August 15th, 2022 at 03:07 pm
जैसा की हम सभी जानते है की हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित होता है। सावन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) कहा जाता हैं। पुत्रदा एकादशी का व्रत साल भर में दो बार रखा जाता है। पहली पुत्रदा एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन और दूसरी पुत्रदा एकादशी व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन रखा जाता है। पुत्रदा एकादशी के व्रत से संतान की प्राप्ति होती है और संतान के सारे कष्ट दूर होते हैं। आइए जानते हैं पुत्रदा एकादशी कब हैं?, पुत्रदा एकादशी व्रत कथा, पुत्रदा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त, Putrada ekadashi vrat katha in Hindi, Significance of Putrada Ekadashi, Putrada Ekadashi kab hain, Download Putrada Ekadashi Vrat katha PDF
इस वर्ष सावन माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी 08 अगस्त को पड़ रही हैं ।
पुत्रदा एकादशी व्रत मुहूर्त Shubh Muhurt Of Putrada Ekadashi
विवरण | तिथि और दिन | समय |
---|---|---|
एकादशी तिथि प्रारंभ | 07 अगस्त 2022, रविवार | रात्रि 11:50 |
एकादशी तिथि समाप्त | 08 अगस्त 2022, सोमवार | रात्रि 9 बजे |
सनातन धर्म में उदयातिथि का विशेष महत्व होता है। पूजा-पाठ, व्रत आदि से जुड़े नियम उदयातिथि के आधार पर ही किए जाते हैं। उदयातिथि के अनुसार 08 अगस्त को पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi का व्रत रखा जाएगा।
पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi की पूजन विधि
- एकादशी के दिन व्रती को प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान के बाद पीले वस्त्र धारण करना चाहिए ।
- इसके बाद घर के मंदिर में दीप जलाए और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा की चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति को गंगाजल से अभिषेक करके स्थापित करें।
- भगवान को पूजा में धूप, दीप, फूल-माला, अक्षत्, रोली और नैवेद्य समेत 16 सामग्री भगवान को चढ़ाएं। ।
- भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते जरुर अर्पित करें, क्यूकि बिना तुलसी के पत्ते के उनकी पूजा अधूरी मानी जाती हैं और बिना तुलसी दल के भगवान विष्णु भोग स्वीकार नहीं करते ।
- इसके पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय“ का मंत्र का उच्चारण करें । इसके बाद पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi की व्रत कथा पढ़ें
- पूजा के पश्च्यात भगवन विष्णु की आरती करें और हाथ जोड़कर उनका आशीर्वाद लें ।
- अगले दिन व्रत का पारण मुहूर्त पर ही करें, तभी व्रत का फल प्राप्त होत है। पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथासंभव दान-दक्षिणा जरूर दें।
श्रावण पुत्रदा एकादशी का महत्व (Savan Putrada Ekadashi Importance)
सनातन धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। श्रावण पुत्रदा एकादशी ( Savan Putrada Ekadashi ) संतान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। विधि विधान से इस व्रत को पूर्ण करने पर श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान विष्णु की कृपा से धन संपत्ति में बढ़ोतरी होती है। सावन के महीने में व्रत और पूजन करने से भगवान भोलेनाथ की कृपा भी प्राप्त होती है।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। उसके पितर भी व्यथित हो पिंड लेते थे कि सुकेतुमान के बाद हमें कौन पिंड देगा। इधर राजा भी बंधु-बांधव, राज्य, हाथी, घोड़ा आदि से संतुष्ट नहीं था। उसका एकमात्र कारण पुत्रहीन होना था। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते। इस तरह राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था। इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया। एक दिन इन्हीं विचारों में डूबा हुआ वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया।
घोड़े पर सवार राजा वन, पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बंदर आदि विचरण कर रहे हैं। हाथी शिशुओं और हथिनियों के बीच में विचर रहा है। उस वन में राजा ने देखा कि कहीं तो सियार कर्कश शब्द निकाल रहे हैं और कहीं मोर अपने परिवार के साथ नाच रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा और ज्यादा दुखी हो गया कि उसके पुत्र क्यों नहीं हैं? इसी सोच-विचार में दोपहर हो गई। वह सोचने लगा कि मैंने अनेक यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन कराया है, किंतु फिर भी मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? आखिर इसका कारण क्या है? अपनी व्यथा किससे कहूं? कौन मेरी व्यथा का समाधान कर सकता है?
अपने विचारों में खोए राजा को प्यास लगी। वह पानी की तलाश में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला। उस सरोवर में कमल पुष्प खिले हुए थे। सारस, हंस, घड़ियाल आदि जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सरोवर के चारों तरफ ऋषियों के आश्रम बने हुए थे। अचानक राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। इसे शुभ शगुन समझकर राजा मन में प्रसन्न होता हुआ घोड़े से नीचे उतरा और सरोवर के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम करके उनके सामने बैठ गया।
ऋषिवर बोले – ‘हे राजन! हम तुमसे अति प्रसन्न हैं। तुम्हारी जो इच्छा है, हमसे कहो।’
राजा ने प्रश्न किया – ‘हे विप्रो! आप कौन हैं? और किसलिए यहां रह रहे हैं?’
ऋषि बोले – ‘राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी है। आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है और हम सब इस सरोवर में स्नान करने आए हैं।’
ऋषियों की बात सुन राजा ने कहा – ‘हे मुनियो! मेरा भी कोई पुत्र नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान वीजिए।’
ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi है। आप इसका उपवास करें। भगवान श्रीहरि की अनुकम्पा से आपके घर अवश्य ही पुत्र होगा।’
राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया। भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना।”
कथा-सार
पुत्र का न होना बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है, उससे भी दुर्भाग्यपूर्ण है पुत्र का कुपुत्र होना, अतः सर्वगुण सम्पन्न और सुपुत्र पाना बड़ा ही दुर्लभ है। ऐसा पुत्र उन्हें ही प्राप्त होता है, जिन्हें साधुजनों का आशीर्वाद प्राप्त हो तथा जिनके मन में भगवान की भक्ति हो। इस कलियुग में सुयोग्य पुत्र प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi का व्रत ही है।
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FAQ About Putrada Ekadashi
2022 में पुत्रदा एकादशी कब हैं ?
इस वर्ष सावन माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी 08 अगस्त को पड़ रही हैं ।
पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त कब हैं ? Shubh Muhurt Of Putrada Ekadashi in 2022
सावन एकादशी तिथि प्रारंभ 07 अगस्त 2022, रविवार रात्रि 11:50
सावन एकादशी तिथि समाप्त 08 अगस्त 2022, सोमवार रात्रि 9 बजे
दोस्तों, आशा करती हूँ सावन पुत्रदा एकादशी Putrada Ekadashi कब हैं? जाने शुभ मुहुर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्त्व आप सभी को सभ को पसंद आई होंगी। कृपया इस अपने परिवारजनों और मित्रों से साझा करें।
धन्यवाद 🙏