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Nirjala Ekadashi 2022 Date: निर्जला एकादशी कब हैं? शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और व्रत कथा Download PDF
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Last updated on June 13th, 2022 at 05:49 pm
हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत महत्त्व हैं। वर्ष भर में 24 एकादशी आती हैं, जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं। जिनमें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी Nirjala Ekadashi जो सबसे श्रेष्ट मानी जाती हैं। इसे निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहा जाता हैं। आइए जानते हैं, निर्जला एकादशी कब है 2022, निर्जला एकादशी हिन्दू पंचांग, निर्जला एकादशी व्रत की विधि, निर्जला एकादशी व्रत कथा, निर्जला एकादशी का महत्व, निर्जला एकादशी कब की है, भीमसेनी एकादशी कब है,भीमसेनी एकादशी 2022, भीमसेनी एकादशी व्रत कथा, भीमसेनी एकादशी का महत्व, निर्जला एकादशी व्रत कथा हिंदी डाउनलोड पीडीऍफ़ nirjala ekadashi kab hai, nirjala ekadashi 2022 date and time, nirjala ekadashi vrat 2022, nirjala ekadashi vrat katha hindi download PDF
मान्यता हैं की निर्जला एकादशी का व्रत करने से साल भर में आने वाली समस्त एकादशी का पुण्य प्राप्त हो जाता हैं।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त (Nirjala Ekadashi 2022 Date)
विवरण | तिथि | समय |
---|---|---|
निर्जला एकादशी तिथि और व्रत आरंभ | 10 जून | 07:25 AM |
निर्जला एकादशी तिथि समापन | 11 जून | 05:45 AM |
भीमसेन एकादशी व्रत पूजा विधि
- इस व्रत में एकादशी तिथि के सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।
- एकादशी के दिन प्रात:काल नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान के बाद पीले वस्त्र धारण करके सर्वप्रथम भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनकी प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं और विधि विधान से पूजा करें और निर्जला एकादशी व्रत की कथा पढ़े या सुने ।
- इसके पश्चात भगवान का ध्यान करते हुए ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का मंत्र का उच्चारण करें ।
- इस दिन भक्ति भाव से भगवान का कीर्तन करना चाहिए।
- इस दिन व्रती को चाहिए कि वह जल से कलश भरे व सफ़ेद वस्त्र को उस पर ढककर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें।
- निर्जला एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को 24 घंटे तक अन्न और जल का त्याग करके भगवान विष्णु की आराधना करनी चाहिए.
इसके बाद दान, पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है।
निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi में दान का महत्त्व
निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi पर जूते, घड़ा, छाता आदि का दान करना उत्तम माना जाता है । इसके अलावा गरीब, जरूरतमंद लोगों को अन्न का दान और वस्त्र दान करने से भी विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है ।
इस दिन चना और गुड़ का भी दान शुभ माना गया है ।
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ महीने में पड़ती है । ज्येष्ठ का मास अत्यंत गर्म होता है जिसके चलते जल का विशेष महत्त्व होता है । मान्यता है कि इसलिए इस एकादशी को शीतलता प्रदान करने वाली चीजों को दान करने से बहुत पुण्य फल की प्राप्ति होती है । लोग इस दिन ठंडा शरबत पिलाते हैं ।
भीमसेनी एकादशी नाम पड़ने की कहानी
निर्जला एकादशी की कथा
एक समय महर्षि वेदव्यासजी महाराज युधिष्ठिर के यहाँ संयोग से पहुँच गये। महाराज युधिष्ठिर ने उनका समुचित ने आदर किया। अर्घ्य और पाद्य देकर सुन्दर आसन पर बैठाकर षोडशोपचार पूर्वक उनकी पूजा की। जब महर्षि सब प्रकार से निश्चिन्त होकर बैठ गये तब भीमसेन ने हाथ जोड़कर उनसे कहा- भगवन्! मैं बड़ी आपत्ति में पड़ा हुआ हूँ। दया कर आप मुझको इस आपत्ति बचाइये। भीमसेन के ऐसे वचन सुन महर्षि व्यास ने हँसते हुए पूछा-क्या बात है भीम! निःसंकोच हो कहो। भीम ने कहा- "प्रभु ! महाराज युधिष्ठिर, धनुषधारी अर्जुन, विचारवान् सहदेव और बहादुर नकुल एवं सौभाग्यवती महारानी द्रौपदी इत्यादि सभी लोग एकादशी का व्रत करते हैं और मुझे भी विवश करते हैं कि तुम भी एकादशी का व्रत करो। महाराज! आप तो जानते ही हैं कि भीमसेन का जीवन अन्न पर ही आश्रित है। एक दिन भोजन न करने की बात तो अत्यन्त दुष्कर है। एक क्षण भी बिना खाये यह नहीं रह सकता। तब आप ही बताइये कि किस प्रकार यह मेरा धर्मसंकट दूर हो।" भीमसेन के ऐसे वचन सुन व्यासजी ने कहा- मानव धर्म की सम्पूर्ण कथा मैं तुमको सुना चुका हूँ। साथ ही वैदिक धर्म की कथा तुम्हें समुचित रूप से सुनाई है और यह भी बतलाया और समझाया है कि कलि-काल में वे समस्त धर्म-कार्य करना असम्भव नहीं तो कठिन और दुष्कर तो जरूर है। अस्तु, मानव जीवन के कल्याण के निमित्त मास-मास की कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की एकादशियों का व्रत अवश्य ही करना चाहिए। बिना इन व्रतों को धारण किये प्राणी मात्र का कल्याण नहीं है। महर्षि व्यास के ऐसे वचन सुन भीमसेन अपनी धर्मभीरुता के कारण बेंत के समान काँपने लगे और अत्यन्त ही भयभीत होकर बोले-प्रभो! यह तो ठीक है परन्तु व्रत का रखना और भूखा रहना तो मुझे मृत्यु से भी बढ़कर है सो भी हर महीने में दो बार वासुदेव! वासुदेव! हे भगवन्! अब आप कोई ऐसा व्रत बतलाइये कि जिसमें ज्यों-त्यों कर एक दिन भूखा रहकर ही मैं पापों से मुक्त हो जाऊँ। भीमसेन के ऐसे वचन सुन महर्षि वेदव्यास ने कहा- अच्छी बात है, मैं तुम्हें व्रत बताता हूँ उसको करो। इस एक ही व्रत का पुण्य फल मास-मास की समस्त एकादशियों से बढ़कर होगा। महर्षि के ऐसे वचन सुन भीमसेन प्रसन्न हो गये और हाथ जोड़कर कहा-प्रभो! कहिये और शीघ्र कहिये कि वह कौन सा व्रत है? महर्षि ने कहा-वह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का है। तुम श्रद्धा भक्ति सहित दशमी को सोते समय भगवान् को प्रणाम कर उनकी मानसिक पूजा करो और हाथ जोड़कर अपने मन में इस प्रकार संकल्प करो कि प्रभो! कल मैं ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करूँगा। मुझे शक्ति दो कि मैं अपने व्रत को पूर्ण कर सकूँ। इस प्रकार प्रार्थना कर सो रहो। दूसरे दिन निर्जला एकादशी का दिन होगा, बिना खाये- पिये निराहार और निर्जल रहो। यहाँ तक कि आचमन इत्यादि में भी जल न ग्रहण करो। इस व्रत के प्रभाव से स्त्री हो अथवा पुरुष, सभी के मन्दराचल जैसे भीषण और महान् पाप भी अवश्य ही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में गोदान का बड़ा महत्त्व है अर्थात् गोदान अवश्य करना चाहिए। यदि कोई गोदान देने की सामर्थ्य न रखता हो तो उसे ताँबा, पीतल या मिट्टी का पानी भरा हुआ घड़ा, उसमें थोड़ा सोना छोड़ और उसे नवीन वस्त्र में लपेट ब्राह्मण को श्रद्धा और भक्तिपूर्वक दान करना चाहिए। इस प्रकार जलदान देने एवं स्वयं व्रत समाप्ति जल न ग्रहण करने वाले प्राणियों को एक-एक क्षण कोटि-कोटि गोदान देने का फल प्राप्त होता है। उस दिन यह कार्य अर्थात् यज्ञ, दान एवं जपादि कार्य करने वाले को अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस प्रकार श्रीकृष्णजी ने स्वयं कहा है। अतः फिर दूसरा पुण्य कार्य करने की आवश्यकता क्या है? विष्णुलोक की प्राप्ति इसी निर्जला व्रत के ही द्वारा हो सकती है। इस दिन फलाहार करना चाहिए। अन्न खाने वाले की अनेकों प्रकार की दुर्दशा होती है और वे चाण्डाल स्वरूप समझे जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से चोर, गुरुद्वेषी एवं हर प्रकार के पापियों का उद्धार हो जाता है। श्रद्धालु स्त्री एवं पुरुषों के विशेष कर्त्तव्य ये हैं। शेषशय्या पर स्थित श्रीविष्णु भगवान् की भक्तिपूर्वक पूजा एवं धेनुदान तथा ब्राह्मणों को मिष्ठान्न का भोजन करा, दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करना चाहिये। निर्जला व्रत रखने वालों को गौ, वस्त्र, छत्र, शय्या, कमण्डलु आदि वस्तुओं का प्रेमपूर्वक भक्तिसहित दान करना चाहिये। उपानह दान करने से स्वर्गगमन के हेतु सुवर्णभूषित रथ प्राप्त होता है और जो इसको भक्तिपूर्वक श्रवण करके तथा कीर्तन इत्यादि करके रात्रि-जागरण करते हैं वे मनुष्य बिना विघ्न स्वर्ग प्राप्त करते हैं।
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निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi व्रत का महत्व
- एकादशी व्रत भगवान श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। इस दिन उपवास करने से मन निर्मल और शरीर स्वस्थ होता है।
- इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति आती है। इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री हरि विष्णु के परम धाम का वास प्राप्त होता है।
- निर्जला एकादशी के दिन तुलसी के पेड़ के पास घी का दीपक जला कर भगवान विष्णु की पूजा –अर्चना करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- धार्मिक महत्त्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य देने के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।
- जो श्रद्धालु वर्षभर की समस्त एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं उन्हें ज्येष्ठ माह की निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए, क्योंकि इस व्रत को रखने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
दोस्तों, आशा करती हूँ की Nirjala Ekadashi 2022 Date: निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कब हैं? शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और कथा आप सभी को पसंद आई होंगी। कृपया इसे अपने मित्रों और प्रियजनों से share करें।
धन्यवाद!