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आत्मविश्वाश और Motivation बढ़ाने वाली 3 शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएं in Hindi
प्रेरणा हमें अपने लक्ष्य की दिशा में कर्म करने को उत्साहित करता है। इस प्रेरणा के कई स्रोत हो सकते हैं जिसमे से शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथा भी एक हैं इस पोस्ट में आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ का संकलन दिया गया है, बकरी, कुत्ता और सन्यासी तथा हिरण शेर और शिकारी और ब्राम्हण, बकरी और तीन ठग आप सभी को पढ़ें, आशा है यह आपको पसंद आएगा।
Last updated on August 20th, 2023 at 04:42 pm
प्रेरणा हमें अपने लक्ष्य की दिशा में कर्म करने को उत्साहित करता है इस प्रेरणा के कई स्रोत हो सकते हैं जिसमे से शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथा भी एक हैं इस पोस्ट में आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ का संकलन दिया गया है, बकरी, कुत्ता और सन्यासी तथा हिरण शेर और शिकारी और ब्राम्हण, बकरी और तीन ठग आप सभी को पढ़ें, आशा है यह आपको पसंद आएगा।
बोध कथा – बकरी, कुत्ता और सन्यासी-प्रेरणादायक बोध कथाएं
कसाई के पीछे घिसटती जा रही बकरी ने सामने से आ रहे संन्यासी को देखा तो उसकी उम्मीद बढ़ी। मौत आँखों में लिए वह फरियाद करने लगी-‘महाराज! मेरे छोटे-छोटे मेमने हैं। आप इस कसाई से मेरी प्राण-रक्षा करें। मैं जब तक जियूंगी, अपने बच्चों के हिस्से का दूध आपको पिलाती रहूंगी।
बकरी की करुण पुकार का संन्यासी पर कोई असर न पड़ा। वह निर्लिप्त भाव से बोला-‘मूर्ख, बकरी क्या तू नहीं जानती कि मैं एक संन्यासी हूँ। जीवन-मृत्यु, हर्ष-शोक, मोह-माया से परे, हर प्राणी को एक न एक दिन तो मरना ही है। समझ ले कि तेरी मौत इस कसाई के हाथों लिखी है। यदि यह पाप करेगा तो ईश्वर इसे भी दंडित करेगा।
मेरे बिना मेरे मेमने जीते-जी मर जाएंगे, बकरी यह कहकर रोने लगी।
“तुम मूर्ख हो, रोने से बेहतर है कि भगवान का नाम लिया जाए। याद रखें, मृत्यु नए जीवन का द्वार है। सांसारिक संबंध मोह का परिणाम हैं।”
संत ने उपदेश दिया। बकरी निराश हो गई।
पास में खड़े एक कुत्ता जो पूरे दृश्य से अवगत था, उसने पूछा- संन्यासी महाराज, क्या आप मोह-माया से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं?
लपककर संन्यासी ने जवाब दिया-‘बिलकुल, भरा-पूरा परिवार था मेरा। सुंदर पत्नी, सुशील भाई-बहन, माता-पिता, चाचा-ताऊ, बेटा-बेटी। बेशुमार जमीन-जायदाद। मैं एक ही झटके में सब कुछ छोड़कर परमात्मा की शरण में चला आया। सांसारिक प्रलोभनों से बहुत ऊपर, सब कुछ छोड़ आया हूँ। मोह-माया का यह निरर्थक संसार छोड़ आया हूँ। जैसे कीचड़ में कमल संन्यासी डींग मारने लगा।
कुत्ते ने समझाया- आप चाहें तो बकरी की प्राणरक्षा कर सकते हैं। कसाई आपकी बात नहीं टालेगा। एक जीव की रक्षा हो जाए तो कितना उत्तम हो।
संन्यासी ने कुत्ते को जीवन का सार समझाना शुरू कर दिया-
‘मौत तो निश्चित ही है, आज नहीं तो कल, हर प्राणी को मरना है। इसकी चिंता में व्यर्थ स्वयं को कष्ट देता है जीव।’ संन्यासी को लग रहा था कि वह उसे संसार के मोह-माया से मुक्त कर रहा है।
आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ
अभी संन्यासी अपना ज्ञान बघार ही रहा था कि तभी सामने एक काला भुजंग नाग फन फैलाए दिखाई पड़ा। वह संन्यासी पर न जाने क्यों कुपित था। मानों ठान रखा हो कि आज तो तूझे डंसूगा ही।
सांप को देखकर संन्यासी के पसीने छूटने लगे। मोह-मुक्ति का प्रवचन देने वाले संन्यासी ने कुत्ते की ओर मदद के लिए देखा।
कुत्ते की हंसी छूट गई। ‘संन्यासी महोदय मृत्यु तो नए जीवन का द्वार है। उसको एक न एक दिन तो आना ही है, फिर चिंता क्या? कुत्ते ने संन्यासी के वचन दोहरा दिए।
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इस नाग से मुझे बचाओ।’ अपना ही उपदेश भूलकर संन्यासी गिड़गिड़ाने लगा। मगर कुत्ते ने उसकी ओर ध्यान न दिया।
कुत्ते ने चुटकी ली- ‘आप अभी यमराज से बातें करें। जीना तो बकरी चाहती है। इससे पहले कि कसाई उसको लेकर दूर निकल जाए, मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है।
इतना कहते हुए कुत्ता छलांग लगाकर नाग के दूसरी ओर पहुँच गया। फिर दौड़ते हुए कसाई के पास पहुँचा और उस पर टूट पड़ा।
आकस्मिक हमले से कसाई संभल नहीं पाया और घबराकर इधर-उधर भागने लगा। बकरी की पकड़ ढीली हुई तो वह जंगल में गायब हो गई।
कसाई से निपटने के बाद कुत्ते ने संन्यासी की ओर देखा। संन्यासी अभी भी ‘मौत’ के आगे कांप रहा था।
कुत्ते का मन हुआ कि संन्यासी को उसके हाल पर छोड़कर आगे बढ़ जाए लेकिन अंतरात्मा की आवाज नहीं मानी। वह दौड़कर विषधर के पीछे पहुँचा और पूंछ पकड़ कर झाड़ियों की ओर उछाल दिया।
संन्यासी की जान में जान आई। वह आभार से भरे नेत्रों से कुत्ते को देखने लगा।
कुत्ता बोला- ‘महाराज, जहाँ तक मैं समझता हूँ ,
मौत से वही ज्यादा डरते हैं, जो केवल अपने लिए जीते हैं।
एक इंसान और एक जानवर में क्या अंतर है जो केवल अपनी परवाह करता है? जानवर भी दूसरों का ख्याल रखते हैं
कथा सार
गेरुआ पहनकर निकल जाने या कंठी माला डालकर प्रभु नाम जपने से कोई प्रभु का प्रिय नहीं हो जाता। जिसके मन में दया और करूणा नहीं उनसे तो ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते हैं। धार्मिक प्रवचन केवल पापबोध से कुछ पल के लिए बचा लेते हैं परंतु जीने के लिए संघर्ष अपरिहार्य है और यही वास्तविकता है। मन में यदि करुणा-ममता न हों तो धार्मिक रीतियाँ भी आडंबर बन जाती हैं। आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ
हिरण, शेर और शिकारी बोध कथा
आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ -2
जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी। वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थी, कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये।
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वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी।
उसने दाये देखा, तो एक शिकारी तीर का निशाना, उस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडी, तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडी, तो नदी में जल बहुत था।
मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ?
क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी ?
वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?
हिरनी अपने आप को शून्य में छोड, अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी। कुदरत का कारिष्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुए, शिकारी की आँखे चौंधिया गयी। उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते, शेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारी, शेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।
कथा सार
हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते। तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।अन्तत: यश, अपयश , हार ,जीत, जीवन, मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
बोधकथा – ब्राम्हण, बकरी और तीन ठग
आत्मविश्वाश बढ़ाने वाली 3 हिंदी शिक्षाप्रद एवं प्रेरणादायक बोध कथाएँ-3
पुराने समय की बात है। किसी गांव में शम्भूदयाल नामक एक ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसके एक जजमान ने उसे एक मोटी बकरी भेंट में दी। पंडित ने बकरी को अपने कंधे पर उठाया और अपने घर की ओर चल पड़ा। रा रास्ता लम्बा और सुनसान था रास्तें में जब वह जंगल से गुजर रहा था, तब उसे तीन ठग मिले । उन ठगों ने सोच अगर हमें यह बरी मिल जाए तो हम आज दावत उड़ायेंगे। उन तीनों ने उस बकरी को हथियाने की योजना बनाई।
एक ठग ने ब्राम्हण को रोक कर कहा जयराम जी की पंडित जी आप यह आप कुत्ते का बच्चा सिर पर लिए कहाँ चले जा रहे हैं?
पंडित चिड़कर बोला, “यह कुत्ता नहीं बकरी है। मैं इसे अपने घर ले जा रहा हूं, मूर्ख।”
वह आदमी अपने रास्ते पर चला गया पंडित ने सोचा बड़ी अजीब बात है बकरी को वह कुत्ता बोल रहा हैं । फिर भी उन्होंने एक दफा बकरी के पैर टटोल कर देखा कि कहीं कुत्ते के तो नहीं है, क्योंकि कोई आदमी को क्या प्रयोजन था। देखा कि बकरी ही है।
पंडित निश्चित होकर आगे बढ़ा ही था कि दूसरी गली पर दूसरा ठग मिला। उसने कहा नमस्कार, बड़ा अच्छा कुत्ता ले आए हैं। मैं भी कुत्ता खरीदना चाहता हूं। कहां से खरीद लिया आपने? अब उतनी हिम्मत से पंडित जी नहीं कह सके कि यह कुत्ता नहीं है। क्योंकि अब दूसरा आदमी कह रहा था और दो दो आदमी धोखे में नहीं हो सकते थे।
फिर भी पंडित जी बोले मुझे समझ नहीं आ रहा आप बकरी को कुत्ता क्यों बोल रहे हैं । यह कुत्ता नहीं बकरी हैं ठग कहने लगा, किसने कहा बकरी है? किसी ने बेवकूफ बनाया मालूम होता है और यह कहकर वह अपने रास्ते पर चला गया। पंडित जी ने बगल की गली में उस बकरी को उतार कर देखा कि देख लेना चाहिए कि क्या गड़बड़ है, लेकिन बकरी ही थी। ये दो आदमी धोखा खा गए। लेकिन डर उसके भीतर भी पैदा हो गया कि मैं किसी भ्रम में तो नहीं हूं।
अब की बार वह उसको लेकर डरा डरा हुआ सा सड़क से जा रहा था कि तीसरा आदमी मिला। और उसने कहा नमस्कार! यह कुत्ता कहां से ले आए? अब की बार तो उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ी कि यह कह दे कि यह बकरी है।
ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है। तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह कुत्ता मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया और उन तीनों ने मिलकर उस बकरे की दावत उडाई ।
कथा-सार
आत्मविश्वास बहुत बड़ी चीज है. भेड़चाल में फंसकर कोई भी काम करना मूर्खता ही कहलाएगा। चार-पांच आदमी भरी दोपहरी को रात कहें तो रात नहीं हो जाएगी, लेकिन मुर्ख व्यक्ति भ्रमित अवश्य हो सकता है। पंडितजी के साथ भी ऐसा ही हुआ-चार ठगों ने उनकी बकरी को कुत्ता कहा और वह भी ऐसा ही समझे। परिस्थितियां पहचानकर स्वविवेक से निर्णय करनेवाला प्राणी ही बुद्धिमान कहलाता है।