इतिहास
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव कौन कौन से थे ? वैज्ञानिक तथ्य एवं विश्लेषण
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव कौन कौन से थे ? प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। महर्षि बाल्मीकि ने रामायण की रचना की
Last updated on March 28th, 2022 at 09:41 pm
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव
दोस्तों , आशा करता हूँ आप सभी स्वस्थ एवं सुरक्षित होंगे, कोरोना के इस संक्रमण काल में देश में 24 मार्च 2020 को 21 दिनों के लिए लॉकडाउन घोषित किया गया हैं। इस दौरान सभी देशवासियों को घर से बाहर न निकलने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपील किया हैं । इस लेख में हम आपको वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव के बारे में बताएँगे।
इसके बाद कई लोगों ने सरकार को पत्र लिख कर और सोशल मीडिया के माध्यम से यह अनुरोध किया था कि दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत का पुनः प्रसारण किया जाए । इसके बाद सरकार ने दूरदर्शन पर रामानंद सागर द्वारा रचित सीरियल रामायण को पुनः प्रसारित करने की घोषणा की ताकि लोगों को घर पर मनोरंजन के साथ भारतीय संस्कृति का ज्ञानवर्धन भी होता रहे।
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव प्रमुख रूप से 17 है ,
देखिएयात्रा का नक्शा
- तमसा नदी
2. श्रृंगवेरपुर तीर्थ
3. कुरई गांव
4. प्रयाग
5. चित्रकूट
6. सतना
7. दंडकारण्य
8. पंचवटी नासिक
9. सर्वतीर्थ
10. पर्णशाला
11. तुंगभद्रा
12. शबरी का आश्रम
13. ऋष्यमूक पर्वत
14. कोडीकरई
15. रामेश्वरम
16. धनुषकोडी
17. ‘नुवारा एलिया’ पर्वत श्रृंखला
जाने–माने इतिहासकार और पुरातत्वशास्त्री अनुसंधानकर्ता डॉ. राम अवतारने श्रीरामऔर सीताके जीवनकी घटनाओंसे जुड़ेऐसे 200 से भी अधिकस्थानों का पता लगायाहै, जहांआज भी तत्संबंधी स्मारक स्थलविद्यमान हैं, जहां श्रीराम और सीता रुके या रहे थे। वहां के स्मारकों, भित्तिचित्रों, गुफाओं आदि स्थानों के समय–काल की जांच–पड़ताल वैज्ञानिक तरीकोंसे की। आइये जाने उनस्थानों के बारे में जहाँ जहाँ प्रभु श्रीराम रुके:-
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव
इस ग्राम में एक छोटा-सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहां गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीताजी ने कुछ देर विश्राम किया था।
राम भरत मिलाप |
जब राम आश्रम से विदा होने लगे तो अत्रि ऋषि उन्हें विदा करते हुए बोले, ‘हे राघव! इन वनों में भयंकर राक्षस तथा सर्प निवास करते हैं, जो मनुष्यों को नाना प्रकार के कष्ट देते हैं। इनके कारण अनेक तपस्वियों को असमय ही काल का ग्रास बनना पड़ा है। मैं चाहता हूं, तुम इनका विनाश करके तपस्वियों की रक्षा करो।’
राम ने महर्षि की आज्ञा को शिरोधार्य कर उपद्रवी राक्षसों तथा मनुष्य का प्राणांत करने वाले भयानक सर्पों को नष्ट करने का वचन देखर सीता तथा लक्ष्मण के साथ आगे के लिए प्रस्थान किया।
चित्रकूट की मंदाकिनी, गुप्त गोदावरी, छोटी पहाड़ियां, कंदराओं आदि से निकलकर भगवान राम पहुंच गए घने जंगलों में.
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7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाताथा। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकरदंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशाएवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिलहैं।
14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव
सीता हरण |
शबरी का आश्रम |
पुल निर्माण |
इसका नाम धनुषकोडी इसलिए है कि यहां से श्रीलंका तक वानर सेना के माध्यम से नल और नील ने जो पुल (रामसेतु) बनाया था उसका आकार मार्ग धनुष के समान ही है। इन पूरे इलाकों को मन्नार समुद्री क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। धनुषकोडी ही भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र स्थलीय सीमा है, जहां समुद्र नदी की गहराई जितना है जिसमें कहीं-कहीं भूमि नजर आती है।
अशोक वाटिका लंका में स्थित है, जहां रावण ने सीता को हरण करने के पश्चात बंधक बनाकर रखा था। ऐसा माना जाता है कि एलिया पर्वतीय क्षेत्र की एक गुफा में सीता माता को रखा गया था, जिसे ‘सीता एलिया’ नाम से जाना जाता है। यहां सीता माता के नाम पर एक मंदिर भी है।
अशोक वाटिका |
श्रीवाल्मीकि ने रामायण की संरचना श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वर्ष5075 ईपू के आसपासकी होगी(1/4/1 -2)। श्रुतिस्मृति की प्रथा के माध्यम से पीढ़ी–दर–पीढ़ी परिचलित रहनेके बाद वर्ष 1000 ईपू के आसपासइसको लिखित रूप दिया गया होगा। इस निष्कर्ष के बहुत से प्रमाण मिलते हैं।
रामायण की कहानी के संदर्भ निम्नलिखित रूप में उपलब्धहैं–
- कौशाम्बीमेंखुदाईमेंमिलींटेराकोटा (पक्कीमिट्टी) कीमूर्तियां (दूसरीशताब्दीई.पू. )
- बौद्धसाहित्यमेंदशरथजातक (तीसरीशताब्दीई.पू.)
- नागार्जुनकोंडा (आंध्रप्रदेश) मेंखुदाईमेंमिलेस्टोनपैनल (तीसरीशताब्दी)
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र (चौथी शताब्दीई.पू.)
- नचारखेड़ा (हरियाणा) मेंमिलेटेराकोटापैनल (चौथीशताब्दी)
- श्रीलंका के प्रसिद्ध कवि कुमार दास की काव्यरचना ‘जानकीहरण‘ (सातवीं शताब्दी)
संदर्भग्रंथ:वाल्मीकि रामायण
आशा करती हूँ 14 वर्ष के वनवास में भगवान श्री राम के पड़ाव के बारे में जानकारी अच्छी लगी होगी। कृपया इसे अपने मित्रो से साझा करें। जय श्री राम