महिषासुर कौन था And माँ दुर्गा ने महिषासुर का अंत क्यों किया | Time to know why we Celebrate Vijyadashmi?

                              पौराणिक कथा-महिषासुर का वध

                                 महिषासुर का इतिहास और उनके वध की कहानी

 महिषासुर कौन था?

पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर एक असुर था। महिषासुर के पिता रंभ, असुरों का राजा था जो एक बार जल में रहने वाले एक भैंस से प्रेम कर बैठा और इन्हीं के योग से महिषासुर का आगमन हुआ। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर सकता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है।

महिषासुर एक प्रबल पराक्रमी तथा अमित बलशाली था उसने अमर होने की इच्छा से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिये बड़ी कठिन तपस्या की। 

उसकी दस हज़ार वर्षों की तपस्या के बाद लोकपितामह ब्रह्मा प्रसन्न हुए। 

वे हंस पर बैठकर महिषासुर के निकट आये और बोले-‘वत्स! उठो, अब तुम्हारी तपस्या सफल हो गयी। मैं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण करूँगा। इच्छानुसार वर माँगो।’ महिषासुर ने उनसे अमर होने का वर माँगा।

Mahisasur Images| महिषासुर के जीवन और माँ भगवती Mahishasur Mardini के द्वारा महिसासुर के वध की कथा | Desigyani.com
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ब्रह्माजी ने कहा- ‘पुत्र! जन्मे हुए प्राणी का मरना और मरे हुए प्राणी का जन्म लेना सुनिश्चित है। अतएव एक मृत्यु को छोड़कर, जो कुछ भी चाहो, मैं तुम्हें प्रदान कर सकता हूँ।महिषासुर बोला-‘प्रभो! देवता, दैत्य, मानव किसी से मेरी मृत्यु न हो। किसी स्त्री के हाथ से मेरी मृत्यु निश्चित करने की कृपा करें।’ ब्रह्माजी ‘एवमस्तु’ कहकर अपने लोक चले गये।

वर प्राप्त करके लौटने के बाद समस्त दैत्यों ने प्रबल पराक्रमी महिषासुर को अपना राजा बनाया। उसने दैत्यों की विशाल वाहिनी लेकर पाताल और मृत्युलोक पर धावा बोल दिया। समस्त प्राणी उसके अधीन हो गये।

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महिषासुर का आतंक

महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया।  

देवगण परेशान होकर त्रिमूर्ति ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुँचे। सारे देवताओं ने मिलकर उसे फिर से परास्त करने के लिए युद्ध किया किन्तु महाबली महिषासुर के सामने सबको पराजय का मुख देखना पड़ा और देवलोक पर भी महिषासुर का अधिकार हो गया।

भगवान शंकर और ब्रह्मा को आगे करके सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गये और महिषासुर के आतंक से छुटकारा प्राप्त करने का उपाय पूछा। 

भगवान विष्णु ने कहा- ‘देवताओं! ब्रह्मा जी के वरदान से महिषासुर अजेय हो चुका है। हममें से कोई भी उसे नहीं मार सकता है। आओ! हम सभी मिलकर सबकी आदि कारण भगवती महाशक्ति की आराधना करें।

 फिर सभी लोगों ने मिलकर भगवती की आर्तस्वर में प्रार्थना की। सबके देखते-देखते ब्रह्मादि सभी देवताओं के शरीरों से दिव्य तेज़ निकलकर एक परम सुन्दरी स्त्री के रूप में प्रकट हुआ। भगवान शिव की चार पत्नियां थीं। पहली सती जो यज्ञ की आग में कूदकर भस्म हो गई। इसी माता सती ने पार्वती के रूप में नया जन्म लिया। फिर थीं उमा और काली। माता दुर्गा को सदाशिव की अर्धांगिनी कहा जाता है। उन्होंने ही मधु और कैटभ का वध किया था। उन्होंने ही शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था। नवदुर्गा में से एक कात्यायन ऋषि की कन्या ने ही महिषासुर का वध किया था। उसका वध करने के बाद वे महिषसुर मर्दिनी कहलाई। 
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देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध

भगवती महाशक्ति के अद्भुत तेज़ से सभी देवता आश्चर्यचकित हो गये। हिमवान ने भगवती के सवारी के लिये सिंह दिया तथा सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र महामाया की सेवा में प्रस्तुत किये। भगवती ने देवताओं पर प्रसन्न होकर उन्हें शीघ्र ही महिषासुर के भय से मुक्त करने का आश्वासन दिया।

पराम्बा महामाया हिमालय पर पहुँचीं और अट्टहासपूर्वक घोर गर्जना की। उस भयंकर शब्द को सुनकर दानव डर गये और पृथ्वी काँप उठी।

महिषासुर ने देवी के पास अपना दूत भेजा। दूत ने कहा- ‘सुन्दरी! मैं महिषासुर का दूत हूँ। मेरे स्वामी त्रैलोक्यविजयी हैं। वे तुम्हारे अतुलनीय सौन्दर्य के पुजारी बन चुके हैं और तुम से विवाह करना चाहते हैं। देवि! तुम उन्हें स्वीकार करके कृतार्थ करो।’

भगवती ने कहा- ‘मूर्ख! मैं सम्पूर्ण सृष्टि की जननी और महिषासुर की मृत्यु हूँ। तू उससे जाकर यह कह दे कि वह तत्काल पाताल चला जाय, अन्यथा युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित है।

दूत ने अपने स्वामी महिषासुर को देवी का संदेश दिया। भयंकर युद्ध छिड़ गया। एक-एक करके महिषासुर के सभी सेनानी देवी के हाथों से मृत्यु को प्राप्त हुए। महिषासुर का भगवती के साथ 9 दिन तक देवी-महिषासुर संग्राम हुआ।

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उस दुष्ट ने नाना प्रकार के मायिक रूप बनाकर महामाया के साथ युद्ध किया। अन्त में भगवती ने महिषासुर का मस्तक काट दिया और अंतत: वे महिषासुरमर्दिनी कहलाईं!
 

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देवताओं ने भगवती की स्तुति की और भगवती महामाया प्रत्येक संकट में देवताओं का सहयोग करने का आश्वासन देकर अन्तर्धान हो गयीं।

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