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Jitiya Jeetiya Jutiya Vrat Katha Hindi PDF जितिया/ ज्यूतिया / जिउतिया/ जीवित्पुत्रिका व्रत कथा, महत्व, मनाने का कारण, पूजा विधि Download PDF
Jitiya Jeetiya Jutiya Vrat Katha Hindi PDF जितिया/ ज्यूतिया / जिउतिया/ जीवित्पुत्रिका व्रत कथा, महत्व, पूजा विधि Download PDF 2023 में जिउतिया या जितिया कब हैं?
Last updated on September 22nd, 2023 at 10:20 am
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यहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार होता है जो मनाने वाले जातीय, धार्मिक समुह के लिए महत्त्वपूर्ण होता है भारतीय संस्कृति अपने पर्व त्यौहारों की वजह से ही इतनी फली-फूली लगती है। यहां हर पर्व और त्यौहार का कोई ना कोई महत्व होता ही है। कई ऐसे भी पर्व हैं जो हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना को मजबूती देते हैं जैसे जीवित्पुत्रिका व्रत, करवा चौथ आदि। इसमें से ही एक है जीवित्पुत्रिका व्रत यानि जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े जोर शोर से मनाया जाता है! आइए जानते हैं jitiya puja date 2023, jitiya vrat 2023, जितिया व्रत कथा, जितिया व्रत कथा PDF, jitiya kab hai
जिवितपुत्रिका एक त्योहार (जिउतिया या जितिया) है जिसमें निर्जला उपवास पूरे दिन और रात में माताओं द्वारा अपने बच्चों की भलाई के लिए किया जाता है।
2023 में जिउतिया या जितिया कब हैं ?
हिन्दु चन्द्र कैलेण्डर के अनुसार, आश्विन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी पर जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है।
- इस साल 5 अक्टूबर 2023 दिन गुरुवार को नहाए खाए होगा।
- 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को निर्जला व्रत रखा जाएगा।
- 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को व्रत का पारण किया जाएगा, सूर्य उदय के बाद।
2023 में जितिया व्रत का मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 6 अक्टूबर को सुबह 6:34 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त- 7अक्टूबर को सुबह 08:08 बजे तक
व्रत का पारण- 7 अक्टूबर को सुबह 08:10 बजे के बाद
जिउतिया व्रत नियम Jitiya Jeetiya Jutiya Vrat Katha Hindi PDF
इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया पिया जाता है। सूर्योदय के बाद आपको कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है।
इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता।
जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। इसलिए यह निर्जला व्रत होता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है जिसके बाद आप कैसा भी भोजन कर सकते है।
सभी पर्व-त्योहारों से जुड़ी कोई न कोई कहानी भी है जितिया मनाने के पीछे भी एक पौराणिक और एक महाभारत कालीन कहानी प्रसिद्द हैं ->
जितिया व्रत कि पौराणिक कहानी –> पीडीऍफ़
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गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन उदार और परोपकारी व्यक्ति थे। पिता के वन प्रस्थान के बाद उनको ही राजा बनाया गया, लेकिन उनका मन उसमें नहीं रमा। वे राज-पाट भाइयों को देकर अपने पिता के पास चले गए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम कन्या से हुई।
एक दिन वन में उनकी मुलाकात एक वृद्धा से हुई, जो नागवंश से थी। वृद्धा रो रही थी, वह काफी डरी हुई थी। जीमूतवाहन ने उससे उसकी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा। इस पर उसने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वे एक नाग को उनके आहार के रूप में देंगे।
वृद्धा ने बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है। आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है। इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा। वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे। नियत समय पर जीमूतवाहन स्वयं पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हो गए।
लाल कपड़े में लिपटे जीमूतवाहन को गरुड़ अपने पंजों में दबोच कर साथ लेकर चल दिए। उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन की आंखों में आंसू निकलते देखा और कराहते हुए सुना। वे एक पहाड़ पर रुके, तो जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई।
पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस, परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया और कहा कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की। इस घटना के बाद से ही पुत्रों के दीर्घ और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी।
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जितिया मनाने की महाभारत कालीन कथा
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत के बाद अश्वत्थामा बहुत नाराज था। उसके हृदय में बदले की भावना भड़क रही थी। इसी के चलते वह पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार डाला। वे सभी द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अर्जुन ने उसे बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि छीन ली। अश्वत्थामा ने बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को गर्भ को नष्ट कर दिया। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। तब से ही संतान की लंबी उम्र और मंगल के लिए जितिया का व्रत किया जाने लगा।
पूजा विधि
आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। माना जाता है जो महिलाएं जीमूतवाहन की पुरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती है उनके पुत्र को लंबी आयु व् सभी सुखो की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है। जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है।
पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है। पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती है। कहते है जो महिलाएं पुरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्माण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है।
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