नीति शास्त्र के आचार्यों की वैसे तो बहुत लंबी परंपरा है लेकिन शुक्राचार्य, आचार्य बृहस्पति, महात्मा विदुर और आचार्य चाणक्य इनमें प्रमुख हैं। आचार्य चाणक्य ने श्लोक और सूत्र दोनों रूपों में नीति शास्त्र का व्याख्यान किया है। चाणक्य नीति, चाणक्य नीति के अनमोल वचन, चाणक्य विचार इन हिंदी, चाणक्य नीति स्त्री, चाणक्य नीति स्त्री quotes, चाणक्य नीति सुविचार, chanakya quotes hindi, chanakya quotes in hindi, thoughts of Chanakya, चाणक्य के कड़वे वचन, chanakya thoughts hindi, chanakya suvichar, chanakya ke vichar, chanakya niti quotes in hindi
अपने ग्रंथों के प्रारंभ में ही वे अपने पूर्ववर्ती आचार्यों को नमन करते हुए स्पष्ट कर देते हैं कि वो कुछ नया नहीं बता रहे हैं, वे उन्हीं सिद्धांतों का प्रतिपादन कर रहे हैं, जिन्हें विरासत में उन्होंने प्राप्त किया है और जो बदलते परिवेश में भी अत्यंत व्यावहारिक हैं।
आचार्य चाणक्य का जीवन पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि सत्य की समझ रखना ही पर्याप्त नहीं है, जरूरी है कि अन्याय के विरुद्ध संघर्ष भी किया जाए।
तटस्थ रहना साहसी और पराक्रमी व्यक्ति का स्वभाव नहीं होता। लोगों का मानना है कि सज्जन व्यक्ति का स्वभाव कुटिलता के योग्य नहीं होता। उसके लिए तो कुटिलता का नाटक कर पाना भी संभव नहीं है, लेकिन चाणक्य ने सिद्ध कर दिया कि अपने स्वभाव को बनाए रखते हुए अर्थात् भीतर से सज्जन बने रहते हुए भी दुष्टों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जा सकता है।
श्रीकृष्ण और श्रीराम जैसे महान पुरुष इसका उदाहरण हैं। हां, इसके लिए मन को विशेष प्रकार से प्रशिक्षित करना पड़ता है। श्रीकृष्ण ने धर्म युद्ध में भी ‘अधर्म’ का प्रयोग किया। धर्मराज युधिष्ठिर को भी झूठ बोलने के लिए बाधित किया। क्यों? इसलिए कि ‘शठों से शठता’ का व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करते समय विचारणीय यह है कि वह व्यवहार या प्रतिक्रिया स्वार्थ के लिए की जा रही है या कि उसमें जनहित की भावना समाहित है। दुष्टों का विनाश होना ही चाहिए, भले ही साधन कोई भी हो। अनासक्त भाव से किया गया कर्म पाप-पुण्य की सीमा से परे होता है—ऐसा दार्शनिक सिद्धांत है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को यही उपदेश दिया है।
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Best Quotes of Chanakya Niti in Hindi
आइये आज हम देखते हैं आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार उनकी नीतियाँ नीतिशास्त्र जो हमें एक व्यवहारिक जीवन जीना सिखाती हैं-
दूसरो की गलतियों से सीखो अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम पड़ जाएगी।- आचार्य चाणक्य
जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है।- आचार्य चाणक्य
कुबेर भी अगर आय से ज्यादा व्यय करे, तो कंगाल हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे पूछोमैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ? इसका क्या परिणाम होगा ? क्या मैं सफल रहूँगा ? – आचार्य चाणक्य
दौलत, दोस्त ,पत्नी और राज्य दोबारा हासिल किये जा सकते हैं, लेकिन ये शरीर दोबारा हासिल नहीं किया जा सकता। – आचार्य चाणक्य
भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका ईश्वर है, आत्मा ही आपका मंदिर है -आचार्य चाणक्य
परिश्रम वह चाबी है, जो किस्मत का दरवाजा खोल देती है। – आचार्य चाणक्य
व्यक्ति अपने कर्मों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।- आचार्य चाणक्य
चाणक्य नीति हिंदी में Chanakya niti in Hindi
वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं। खुदकी शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं। नेत्र अपने रहस्यों को किसी से भी उजागर मत करो। यह आदत आपके स्वयं के लिए ही घातक सिद्ध होगी। – आचार्य चाणक्य
किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार और सीधा साधा नहीं होना चाहिए क्यूंकि सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं। – आचार्य चाणक्य
वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है। हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो। लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है।- आचार्य चाणक्य
जो लोग दिखने में सुन्दर है, जवान है, ऊँचे कुल में पैदा हुए है, वो बेकार है यदि उनके पास विद्या नहीं है। वो तो पलाश के फूल के समान है जो दिखते तो अच्छे है पर महकते नहीं।- आचार्य चाणक्य
जो व्यक्ति शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता,उसको दुनिया की कोई भी ताकत हरा नहीं सकती है। -आचार्य चाणक्य
Chanakya Niti Quotes for Students विद्यार्थियों पर चाणक्य नीति की सूक्तियां
एक विद्यार्थी पूर्ण रूप से निम्न लिखित बातो का त्याग करे।
१। काम २। क्रोध ३। लोभ ४। स्वादिष्ट भोजन की अपेक्षा। ५। शरीर का शृंगार
६। अत्याधिक जिज्ञासा ७। अधिक निद्रा ८। शरीर निर्वाह के लिए अत्याधिक प्रयास।- आचार्य चाणक्य
अज्ञानी के लिए किताबें और अंधे के लिए दर्पण एक सामान उपयोगी है। – आचार्य चाणक्य
जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है और न धर्म है, वह इस मृत्युलोक में पृथ्वी पर भार स्वरूप मनुष्य रूपी मृगों के समान घूम रहा है। वास्तव में ऐसे व्यक्ति का जीवन व्यर्थ है. वह समाज के किसी काम का नहीं है।
पुस्तकों के पढ़ने से विद्या नहीं आती, वह गुरू के सान्निध्य से प्राप्त होती है। केवल पुस्तकों के ज्ञान को प्राप्त करने वाला विद्वान, सभा में उसी प्रकार अप्रतिष्ठत होता है, जिस प्रकार कोई दुराचारिणी स्त्री गर्भधारण करने पर भी समाज में सम्मानित नहीं होती।
विद्वान की प्रशंसा सभी लोगों में होती है। वह सर्वत्र पूजा जाता है। विद्या से सभी प्रकार का लाभ प्राप्त होता है, विद्या की पूजा सर्वत्र होती है। इसीलिए अधिक से अधिक ज्ञान अर्जन कीजिये.’
पुस्तकों में लिखी विद्या और दूसरों के पास जमा किया गया धन कभी समय पर काम नहीं आते। ऐसी विद्या या धन को न होने के बराबर ही समझना चाहिए।
मित्रता के लिए चाणक्य नीति कैसे करें सच्चे दोस्त की पहचान
हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है।यह कड़वा सच है – आचार्य चाणक्य
ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं उन्हें दोस्त न बनाओ, वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे, हमेशा सामान स्तर के मित्र ही सुखदाई होते हैं। – आचार्य चाणक्य
मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है ।- आचार्य चाणक्य
संसार में न कोई तुम्हारा मित्र है न शत्रु, तुम्हारा अपना विचार ही, इसके लिए उत्तरदायी है। – आचार्य चाणक्य
जो अपने समाज को छोड़कर दुसरे समाज को जा मिलता है, वह उसी राजा की तरह नष्ट हो जाता है जो अधर्म के मार्ग पर चलता है।- आचार्य चाणक्य
वह जो हमारे चिंतन में रहता है वह करीब है, भले ही वास्तविकता में वह बहुत दूर ही क्यों ना हो; लेकिन जो हमारे ह्रदय में नहीं है वो करीब होते हुए भी बहुत दूर होता है।- आचार्य चाणक्य
स्त्री के चरित्र पर चाणक्य की सूक्तियां
कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है। एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है। एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है।- आचार्य चाणक्य
नौकरों को बाहर भेजने पर, भाई-बंधुओ को संकट के समय तथा दोस्त को विपत्ति में और अपनी स्त्री को धन के नष्ट हो जाने पर परखना चाहिए, अर्थात उनकी परीक्षा करनी चाहिए। -आचार्य चाणक्य
अपमानित होकर जीने से अच्छा मरना है, मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है। – आचार्य चाणक्य
मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन पोषण से और दुखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण करने वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यो के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है। -आचार्य चाणक्य
दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर कर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करे। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है। -आचार्य चाणक्य
राजा की पत्नी, गुरु की स्त्री, मित्र की पत्नी, पत्नी की माता (सास) और अपनी जननी —-ये पांच माताएं मानी गई है। इनके साथ मातृवत् व्यवहार ही करना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है। एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है। एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है।- आचार्य चाणक्य
लम्बे नाख़ून वाले हिंसक पशुओं, नदियों, बड़े-बड़े सींग वाले पशुओ, शस्त्रधारियों, स्त्रियों और राज परिवारो का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का भोजन दुगना, लज्जा चौगुनी, साहस छः गुना और काम (सेक्स की इच्छा) आठ गुना अधिक होता है।-आचार्य चाणक्य
स्त्री का वियोग, अपने लोगो से अनाचार, कर्ज का बंधन, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और अपने प्रतिकूल सभा, ये सभी अग्नि न होते हुए भी शरीर को दग्ध कर देते है। -आचार्य चाणक्य
जो व्यक्ति शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता,उसको दुनिया की कोई भी ताकत हरा नहीं सकती है। -आचार्य चाणक्य
वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है। हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो। लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है।- आचार्य चाणक्य
चन्द्रगुप्त : किस्मत पहले ही लिखी जा चुकी है, तो कोशिश करने से क्या मिलेगा। चाणक्य : क्या पता किस्मत मैं लिखा हो की कोशिश से ही मिलेगा।- आचार्य चाणक्य
नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
वह जो हमारे मन में रहता हमारे निकट है। हो सकता है की वास्तव में वह हमसे बहुत दूर हो। लेकिन वह व्यक्ति जो हमारे निकट है लेकिन हमारे मन में नहीं है वह हमसे बहोत दूर है।- आचार्य चाणक्य
जो व्यक्ति शक्ति न होते हुए भी मन से हार नहीं मानता,उसको दुनिया की कोई भी ताकत हरा नहीं सकती है। -आचार्य चाणक्य
कोयल की शोभा उसके स्वर में है, स्त्री की शोभा उसका पतिव्रत धर्म है, कुरूप व्यक्ति की शोभा उसकी विद्वता में है और तपस्वियों की शोभा क्षमा में है। -आचार्य चाणक्य
बुरे ग्राम का वास, झगड़ालू स्त्री, नीच कुल की सेवा, बुरा भोजन, मूर्ख लड़का, विधवा कन्या, ये छः बिना अग्नि के भी शरीर को जला देते है। -आचार्य चाणक्य
इस संसार में दुःखो से दग्ध प्राणी को तीन बातों से सुख शांति प्राप्त हो सकती है सुपुत्र से, पतिव्रता स्त्री से और सद्संगति से। -आचार्य चाणक्य
Chanakya Quotes about Religion, Dharma and Shastra
सर्वशक्तिमान तीनो लोको के स्वामी श्री विष्णु भगवान को शीश नवाकर मै अनेक शास्त्रों से निकाले गए राजनीति सार के तत्व को जन कल्याण हेतु समाज के सम्मुख रखता हूं। -आचार्य चाणक्य
इस राजनीति शास्त्र का विधिपूर्वक अध्ययन करके यह जाना जा सकता है कि कौनसा कार्य करना चाहिए और कौनसा कार्य नहीं करना चाहिए। यह जानकर वह एक प्रकार से धर्मोपदेश प्राप्त करता है कि किस कार्य के करने से अच्छा परिणाम निकलेगा और किससे बुरा। उसे अच्छे बुरे का ज्ञान हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
लोगो की हित कामना से मै यहां उस शास्त्र को कहूँगा, जिसके जान लेने से मनुष्य सब कुछ जान लेने वाला सा हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है। लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा।- आचार्य चाणक्य
एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है।लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा।- आचार्य चाणक्य
एक व्यक्ति को चारो वेद और सभी धर्मं शास्त्रों का ज्ञान है। लेकिन उसे यदि अपने आत्मा की अनुभूति नहीं हुई तो वह उसी चमचे के समान है जिसने अनेक पकवानों को हिलाया लेकिन किसी का स्वाद नहीं चखा।- आचार्य चाणक्य
जिसके पास धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमे से एक भी नहीं है, उसके लिए अनेक जन्म लेने का फल केवल मृत्यु ही होता है। -आचार्य चाणक्य
दयाहीन धर्म को छोड़ दो, विध्या हीन गुरु को छोड़ दो, झगड़ालू और क्रोधी स्त्री को छोड़ दो और स्नेहविहीन बंधु-बान्धवो को छोड़ दो। -आचार्य चाणक्य
वह व्यक्ति क्यों मुक्ति को नहीं पायेगा जो निम्न लिखित परिस्थितियों में जो उसके मन की अवस्था होती है, उसे कायम रखता है…जब वह धर्म के अनुदेश को सुनता है। जब वह स्मशान घाट में होता है। जब वह बीमार होता है।- आचार्य चाणक्य
Chanakya on money धन पर चाणक्य के विचार चाणक्य नीति
आपत्ति से बचने के लिए धन की रक्षा करे क्योंकि पता नहीं कब आपदा आ जाए। लक्ष्मी तो चंचल है। संचय किया गया धन कभी भी नष्ट हो सकता है। -आचार्य चाणक्य
जिस देश में सम्मान नहीं, आजीविका के साधन नहीं, बन्धु-बांधव अर्थात परिवार नहीं और विद्या प्राप्त करने के साधन नहीं, वहां कभी नहीं रहना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
जहां धनी, वैदिक ब्राह्मण, राजा,नदी और वैद्य, ये पांच न हों, वहां एक दिन भी नहीं रहना चाहियें। भावार्थ यह कि जिस जगह पर इन पांचो का अभाव हो, वहां मनुष्य को एक दिन भी नहीं ठहरना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक और महिला की सुन्दरता है।- आचार्य चाणक्यपुस्तकों में लिखी विद्या और दूसरों के पास जमा किया गया धन कभी समय पर काम नहीं आते। ऐसी विद्या या धन को न होने के बराबर ही समझना चाहिए।
जहां जीविका, भय, लज्जा, चतुराई और त्याग की भावना, ये पांचो न हों, वहां के लोगो का साथ कभी न करें। -आचार्य चाणक्य
विध्या कामधेनु के समान सभी इच्छाए पूर्ण करने वाली है। विध्या से सभी फल समय पर प्राप्त होते है। परदेस में विध्या माता के समान रक्षा करती है। विद्वानो ने विध्या को गुप्त धन कहा है, अर्थात विध्या वह धन है जो आपातकाल में काम आती है। इसका न तो हरण किया जा सकता हे न ही इसे चुराया जा सकता है। -आचार्य चाणक्य
यह निश्चित है की शरीरधारी जीव के गर्भकाल में ही आयु, कर्म, धन, विध्या, मृत्यु इन पांचो की सृष्टि साथ-ही-साथ हो जाती है। -आचार्य चाणक्य
चाणक्य नीति
Chanakya Quotes on life जीवन के बारें में चाणक्य नीति चाणक्य के विचार
जिसका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री उसके अनुसार चलने वाली हो, अर्थात पतिव्रता हो, जो अपने पास धन से संतुष्ट रहता हो, उसका स्वर्ग यहीं पर है। -आचार्य चाणक्य
भोजन करने तथा उसे अच्छी तरह से पचाने की शक्ति हो तथा अच्छा भोजन समय पर प्राप्त होता हो, प्रेम करने के लिए अर्थात रति-सुख प्रदान करने वाली उत्तम स्त्री के साथ संसर्ग हो, खूब सारा धन और उस धन को दान करने का उत्साह हो, ये सभी सुख किसी तपस्या के फल के समान है, अर्थात कठिन साधना के बाद ही प्राप्त होते है। -आचार्य चाणक्य
मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है ।- आचार्य चाणक्य
बीमारी में, विपत्तिकाल में,अकाल के समय, दुश्मनो से दुःख पाने या आक्रमण होने पर, राजदरबार में और श्मशान-भूमि में जो साथ रहता है, वही सच्चा भाई अथवा बंधु है। -आचार्य चाणक्य
जो अपने निश्चित कर्मों अथवा वास्तु का त्याग करके, अनिश्चित की चिंता करता है, उसका अनिश्चित लक्ष्य तो नष्ट होता ही है, निश्चित भी नष्ट हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
बुद्धिहीन व्यक्ति को अच्छे कुल में जन्म लेने वाली कुरूप कन्या से भी विवाह कर लेना चाहिए, परन्तु अच्छे रूप वाली नीच कुल की कन्या से विवाह नहीं करना चाहिए क्योंकि विवाह संबंध समान कुल में ही श्रेष्ठ होता है। -आचार्य चाणक्य
झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, छल-कपट, मूर्खता, अत्यधिक लालच करना, अशुद्धता और दयाहीनता, ये सभी प्रकार के दोष स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से मिलते है। -आचार्य चाणक्य
मन से विचारे गए कार्य को कभी किसी से नहीं कहना चाहिए, अपितु उसे मंत्र की तरह रक्षित करके अपने (सोचे हुए) कार्य को करते रहना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
निश्चित रूप से मूर्खता दुःखदायी है और यौवन भी दुःख देने वाला है परंतु कष्टो से भी बड़ा कष्ट दूसरे के घर पर रहना है।-आचार्य चाणक्य
हर एक पर्वत में मणि नहीं होती और हर एक हाथी में मुक्तामणि नहीं होती। साधु लोग सभी जगह नहीं मिलते और हर एक वन में चंदन के वृक्ष नहीं होते।-आचार्य चाणक्य
चाणक्य नीति
बुद्धिमान लोगो का कर्तव्य होता है की वे अपनी संतान को अच्छे कार्य-व्यापार में लगाएं क्योंकि नीति के जानकार व सद्व्यवहार वाले व्यक्ति ही कुल में सम्मानित होते है। -आचार्य चाणक्य
Chanakya Inspirational Quotes चाणक्य नीति
जो माता-पिता अपने बच्चों को नहीं पढ़ाते, वे उनके शत्रु है। ऐसे अपढ़ बालक सभा के मध्य में उसी प्रकार शोभा नहीं पाते, जैसे हंसो के मध्य में बगुला शोभा नहीं पाता। -आचार्य चाणक्य
अत्यधिक लाड़-प्यार से पुत्र और शिष्य गुणहीन हो जाते है और ताड़ना से गुनी हो जाते है। भाव यही है कि शिष्य और पुत्र को यदि ताड़ना का भय रहेगा तो वे गलत मार्ग पर नहीं जायेंगे। -आचार्य चाणक्य
एक श्लोक, आधा श्लोक, श्लोक का एक चरण, उसका आधा अथवा एक अक्षर ही सही या आधा अक्षर प्रतिदिन पढ़ना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
नदी के किनारे खड़े वृक्ष, दूसरे के घर में गयी स्त्री, मंत्री के बिना राजा शीघ्र ही नष्ट हो जाते है। इसमें संशय नहीं करना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
ब्राह्मण दक्षिणा ग्रहण करके यजमान को, शिष्य विद्याध्ययन करने के उपरांत अपने गुरु को और हिरण जले हुए वन को त्याग देते है। -आचार्य चाणक्य
ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है, वेश्यो का बल उनका धन है और शूद्रों का बल छोटा बन कर रहना, अर्थात सेवा-कर्म करना है। -आचार्य चाणक्य
वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को व अतिथि उस घर को, जिसमे वे आमंत्रित किए जाते है, को भोजन करने के पश्चात छोड़ देते है। -आचार्य चाणक्य
दोष किसके कुल में नहीं है ? कौन ऐसा है, जिसे दुःख ने नहीं सताया ? अवगुण किसे प्राप्त नहीं हुए ? सदैव सुखी कौन रहता है ? -आचार्य चाणक्य
मनुष्य का आचरण-व्यवहार उसके खानदान को बताता है, भाषण अर्थात उसकी बोली से देश का पता चलता है, विशेष आदर सत्कार से उसके प्रेम भाव का तथा उसके शरीर से भोजन का पता चलता है। -आचार्य चाणक्य
चाणक्य अनमोल विचार
कन्या का विवाह अच्छे कुल में करना चाहिए। पुत्र को विध्या के साथ जोड़ना चाहिए। दुश्मन को विपत्ति में डालना चाहिए और मित्र को अच्छे कार्यो में लगाना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
दुर्जन और सांप सामने आने पर सांप का वरण करना उचित है, न की दुर्जन का, क्योंकि सर्प तो एक ही बार डसता है, परन्तु दुर्जन व्यक्ति कदम-कदम पर बार-बार डसता है। -आचार्य चाणक्य
प्रलय काल में सागर भी अपनी मर्यादा को नष्ट कर डालते है परन्तु साधु लोग प्रलय काल के आने पर भी अपनी मर्यादा को नष्ट नहीं होने देते। -आचार्य चाणक्य
मुर्ख व्यक्ति से बचना चाहिए। वह प्रत्यक्ष में दो पैरों वाला पशु है। जिस प्रकार बिना आँख वाले अर्थात अंधे व्यक्ति को कांटे भेदते है, उसी प्रकार मुर्ख व्यक्ति अपने कटु व अज्ञान से भरे वचनों से भेदता है। -आचार्य चाणक्य
रूप और यौवन से संपन्न तथा उच्च कुल में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी यदि विध्या से रहित है तो वह बिना सुगंध के फूल की भांति शोभा नहीं पाता। -आचार्य चाणक्य
किसी एक व्यक्ति को त्यागने से यदि कुल की रक्षा होती हो तो उस एक को छोड़ देना चाहिए। पूरे गांव की भलाई के लिए कुल को तथा देश की भलाई के लिए गांव को और अपने आत्म-सम्मान की रक्षा के लिए सारी पृथ्वी को छोड़ देना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
उद्धयोग-धंधा करने पर निर्धनता नहीं रहती है। प्रभु नाम का जप करने वाले का पाप नष्ट हो जाता है। चुप रहने अर्थात सहनशीलता रखने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और वो जागता रहता है अर्थात सदैव सजग रहता है उसे कभी भय नहीं सताता। -आचार्य चाणक्य
अति सुंदर होने के कारण सीता का हरण हुआ, अत्यंत अहंकार के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान के कारण राजा बलि बांधा गया। अतः सभी के लिए अति ठीक नहीं है। ‘अति सर्वथा वर्जयते।’ अति को सदैव छोड़ देना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
समर्थ को भार कैसा ? व्यवसायी के लिए कोई स्थान दूर क्या ? विद्वान के लिए विदेश कैसा? मधुर वचन बोलने वाले का शत्रु कौन ? -आचार्य चाणक्य
एक ही सुगन्धित फूल वाले वृक्ष से जिस प्रकार सारा वन सुगन्धित हो जाता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से सारा कुल सुशोभित हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
आग से जलते हुए सूखे वृक्ष से सारा वन जल जाता है जैसे की एक नालायक (कुपुत्र) लड़के से कुल का नाश होता है। -आचार्य चाणक्य
जिस प्रकार चन्द्रमा से रात्रि की शोभा होती है, उसी प्रकार एक सुपुत्र, अर्थात साधु प्रकृति वाले पुत्र से कुल आनन्दित होता है। -आचार्य चाणक्य
शौक और दुःख देने वाले बहुत से पुत्रों को पैदा करने से क्या लाभ है ? कुल को आश्रय देने वाला तो एक पुत्र ही सबसे अच्छा होता है। -आचार्य चाणक्य
पुत्र से पांच वर्ष तक प्यार करना चाहिए। उसके बाद दस वर्ष तक अर्थात पंद्रह वर्ष की आयु तक उसे दंड आदि देते हुए अच्छे कार्य की और लगाना चाहिए। सोलहवां साल आने पर मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए। संसार में जो कुछ भी भला-बुरा है, उसका उसे ज्ञान कराना चाहिए। -आचार्य चाणक्य
देश में भयानक उपद्रव होने पर, शत्रु के आक्रमण के समय, भयानक दुर्भिक्ष(अकाल) के समय, दुष्ट का साथ होने पर, जो भाग जाता है, वही जीवित रहता है। -आचार्य चाणक्य
जहां मूर्खो का सम्मान नहीं होता, जहां अन्न भंडार सुरक्षित रहता है, जहां पति-पत्नी में कभी झगड़ा नहीं होता, वहां लक्ष्मी बिना बुलाए ही निवास करती है और उन्हें किसी प्रकार की कमी नहीं रहती। -आचार्य चाणक्य
चाणक्य की ज्ञानवर्धक बातें चाणक्य नीति
साधु महात्माओ के संसर्ग से पुत्र, मित्र, बंधु और जो अनुराग करते है, वे संसार-चक्र से छूट जाते है और उनके कुल-धर्म से उनका कुल उज्जवल हो जाता है। -आचार्य चाणक्य
जिस प्रकार मछली देख-रेख से, कछुवी चिड़िया स्पर्श से (चोंच द्वारा) सदैव अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही अच्छे लोगोँ के साथ से सर्व प्रकार से रक्षा होती है। -आचार्य चाणक्य
यह नश्वर शरीर जब तक निरोग व स्वस्थ है या जब तक मृत्यु नहीं आती, तब तक मनुष्य को अपने सभी पुण्य-कर्म कर लेने चाहिए क्योँकि अंत समय आने पर वह क्या कर पाएगा। -आचार्य चाणक्य
सैकड़ो अज्ञानी पुत्रों से एक ही गुणवान पुत्र अच्छा है। रात्रि का अंधकार एक ही चन्द्रमा दूर करता है, न की हजारों तारें। -आचार्य चाणक्य
बहुत बड़ी आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही जो मर गया, वह अच्छा है क्योंकि मरा हुआ पुत्र कुछ देर के लिए ही कष्ट देता है, परन्तु मूर्ख पुत्र जीवनभर जलाता है। -आचार्य चाणक्य
पुत्र, पत्नी और परिवार पर चाणक्य के विचार
पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है। -आचार्य चाणक्य
वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है। वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है। वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है।- आचार्य चाणक्य
उस गाय से क्या लाभ, जो न बच्चा जने और न ही दूध दे। ऐसे पुत्र के जन्म लेने से क्या लाभ, जो न तो विद्वान हो, न किसी देवता का भक्त हो।- -आचार्य चाणक्य
राजा लोग एक ही बार बोलते है (आज्ञा देते है), पंडित लोग किसी कर्म के लिए एक ही बार बोलते है (बार-बार श्लोक नहीं पढ़ते), कन्याएं भी एक ही बार दी जाती है। ये तीन एक ही बार होने से विशेष महत्व रखते है। -आचार्य चाणक्य
तपस्या अकेले में, अध्ययन दो के साथ, गाना तीन के साथ, यात्रा चार के साथ, खेती पांच के साथ और युद्ध बहुत से सहायको के साथ होने पर ही उत्तम होता है। -आचार्य चाणक्य
पत्नी वही है जो पवित्र और चतुर है, पतिव्रता है, पत्नी वही है जिस पर पति का प्रेम है, पत्नी वही है जो सदैव सत्य बोलती है। -आचार्य चाणक्य
बिना पुत्र के घर सुना है। बिना बंधु-बांधवों के दिशाएं सूनी है। मूर्ख का ह्रदय भावों से सूना है। दरिद्रता सबसे सूनी है, अर्थात दरिद्रता का जीवन महाकष्टकारक है। -आचार्य चाणक्य
बार-बार अभ्यास न करने से विध्या विष बन जाती है। बिना पचा भोजन विष बन जाता है, दरिद्र के लिए स्वजनों की सभा या साथ और वृद्धो के लिए युवा स्त्री विष के समान होती है। -आचार्य चाणक्य
बहुत ज्यादा पैदल चलना मनुष्यों को बुढ़ापा ला देता है, घोड़ो को एक ही स्थान पर बांधे रखना और स्त्रियों के साथ पुरुष का समागम न होना और वस्त्रों को लगातार धुप में डाले रखने से बुढ़ापा आ जाता है। -आचार्य चाणक्य
बुद्धिमान व्यक्ति को बार-बार यह सोचना चाहिए कि हमारे मित्र कितने है, हमारा समय कैसा है-अच्छा है या बुरा और यदि बुरा है तो उसे अच्छा कैसे बनाया जाए। हमारा निवास-स्थान कैसा है (सुखद,अनुकूल अथवा विपरीत), हमारी आय कितनी है और व्यय कितना है, मै कौन हूं- आत्मा हूं, अथवा शरीर, स्वाधीन हूं अथवा पराधीन तथा मेरी शक्ति कितनी है। -आचार्य चाणक्य
जन्म देने वाला पिता, उपनयन संस्कार कराने वाला, विध्या देने वाला गुरु, अन्नदाता और भय से रक्षा करने वाला—- ये पांच ‘पितर’ माने जाते है। -आचार्य चाणक्य
अग्नि देव ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वेश्यो के देवता है। ऋषि मुनियों के देवता ह्रदय में है। अल्प बुद्धि वालों के देवता मूर्तियों में है और सारे संसार को समान रूप से देखने वालों के देवता सभी जगह निवास करते है। -आचार्य चाणक्य
जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते।- आचार्य चाणक्य
अपने ईमान और धर्म बेचकर कर कमाया गया धन अपने किसी काम का नहीं होता, अत: उसका त्याग करें, आपके लिए यही उत्तम है ।- आचार्य चाणक्य
वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं। मोह के समान कोई शत्रु नहीं। क्रोध के समान अग्नि नहीं। स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं।- आचार्य चाणक्य
जैसे एक बछड़ा हज़ारो गायों के झुंड मे अपनी माँ के पीछे चलता है। उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे चलते हैं। – आचार्य चाणक्य
सबसे बड़ा गुरु मंत्र, अपने राज किसी को भी मत बताओ। ये तुम्हे खत्म कर देगा। – आचार्य चाणक्य
योग्यता को समझते हुए अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए। – आचार्य चाणक्य
एक राजा की ताकत उसकी शक्तिशाली भुजाओं में होती है। ब्राह्मण की ताकत उसके आध्यात्मिक ज्ञान में और एक औरत की ताक़त उसकी खूबसूरती, यौवन और मधुर वाणी में होती है। – आचार्य चाणक्य
जो गुजर गया उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतिंत होना चाहिए। समझदार लोग केवल वर्तमान में ही जीते हैं। – आचार्य चाणक्य
जो जिस कार्ये में कुशल हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए। – आचार्य चाणक्य
फूलों की खुशबू हवा की दिशा में ही फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई चारों तरफ फैलती है। – आचार्य चाणक्य
जैसे एक सूखा पेड़ आग लगने पे पुरे जंगल को जला देता है। उसी प्रकार एक दुष्ट पुत्र पुरे परिवार को खत्म कर देता है। – आचार्य चाणक्य
वो व्यक्ति जो दूसरों के गुप्त दोषों के बारे में बातें करते हैं, वे अपने आप को बांबी में आवारा घूमने वाले साँपों की तरह बर्बाद कर लेते हैं। – आचार्य चाणक्य
एक संतुलित मन के बराबर कोई तपस्या नहीं है। संतोष के बराबर कोई खुशी नहीं है। लोभ के जैसी कोई बिमारी नहीं है। दया के जैसा कोई सदाचार नहीं है। – आचार्य चाणक्य
ईश्वर मूर्तियों में नहीं है। आपकी भावनाएँ ही आपका ईश्वर है। आत्मा आपका मंदिर है। – आचार्य चाणक्य
बुद्धिमान व्यक्ति को ऐसे देश में कभी नहीं जाना चाहिए जहाँ : रोजगार कमाने का कोई माध्यम ना हो,
जहा लोगों को किसी बात का भय न हो, जहा लोगो को किसी बात की लज्जा न हो, जहा लोग बुद्धिमान न हो, और जहाँ लोगो की वृत्ति दान धरम करने की ना हो।- आचार्य चाणक्य
Chanakya Quotes on Life चाणक्य नीति
धनवान व्यक्ति के कई मित्र होते है। उसके कई सम्बन्धी भी होते है। धनवान को ही आदमी कहा जाता है और पैसेवालों को ही पंडित कह कर नवाजा जाता है।- आचार्य चाणक्य
वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं। मोह के समान कोई शत्रु नहीं। क्रोध के समान अग्नि नहीं। स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं।- आचार्य चाणक्य
वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है। वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है। वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है।- आचार्य चाणक्य
जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते।- आचार्य चाणक्य
ऊख, जल, दूध, पान, फल और औषधि इन वस्तुओं के भोजन करने पर भी स्नान दान आदि क्रिया कर सकते हैं।- आचार्य चाणक्य
हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होते, हर हाथी के सर पर मणी नहीं होता, सज्जन पुरुष भी हर जगह नहीं होते और हर वन मे चन्दन के वृक्ष भी नहीं होते हैं।- आचार्य चाणक्य
तात, यदि तुम जन्म मरण के चक्र से मुक्त होना चाहते हो तो जिन विषयो के पीछे तुम इन्द्रियों की संतुष्टि के लिए भागते फिरते हो उन्हें ऐसे त्याग दो जैसे तुम विष को त्याग देते हो। इन सब को छोड़कर हे तात तितिक्षा, ईमानदारी का आचरण, दया, शुचिता और सत्य इसका अमृत पियो।- आचार्य चाणक्य
जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंदा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है।- आचार्य चाणक्य
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