क्यूँ मनाते हैं गुड़ी पड़वा पर्व? What is Gudi Padwa 2022 की तिथि, पूजन विधि, शुभ मुहूर्त

Gudi Padwa 2022: गुड़ी पड़वा की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्‍व और मान्‍यताएं, जानिए क्या है Marathi New Year

 

विषय सूची:

 


नवरात्र के साथ ही गुड़ी पड़वा की दस्‍तक होती है। कहा जाता है कि इसी दिन से ही हिंदू नववर्ष की शुरुआत होती है।

गुड़ी पड़वा हिंदुओं के सबसे बहुप्रतीक्षित त्योहारों में से एक है और एक नए साल की शुरुआत है। इसे अक्सर हिंदुओं के पहले पवित्र त्योहार के रूप में माना जाता है।

 
Gudi Padwa 2022: गुड़ी पड़वा की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्‍व और मान्‍यताएं, जानिए क्या है Marathi New Year Desigyani.com
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हिंदू पवित्र ग्रंथों के अनुसार, यह माना जाता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया था।इसलिए, यह नए साल की शुरुआत को चिह्नित करता है और इस प्रकार हिंदुओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

Gudi Padwa 2022

 

गुडी पडवा 2022 तिथि: 

 
Gudi Padwa Date: 2nd April 2022, Saturday
Pratipada Tithi Begins: 02:57 PM 1st April 2022
Pratipada Tithi Ends: 05:26 PM 2nd April 2022
 
पडवा शब्द संस्कृत के शब्द (पड्डव / पड्डवो) से लिया गया है, जिसका अर्थ है चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का पहला दिन और संस्कृत में इसे  प्रतिपदा कहा जाता है। इस त्योहार के अवसर पर एकगुड़ी” (झंडा) फहराया जाता है, इस प्रकार इसे गुड़ी पड़वा नाम दिया जाता है।

यह त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में अत्यधिक लोकप्रिय है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से प्रसिद्ध है

  •  गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे संवत्सर पड़वो नाम से मनाता है।
  •  कर्नाटक में यह पर्व युगाड़ी नाम से जाना जाता है।
  •  आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में गुड़ी पड़वा को उगाड़ी नाम से मनाते हैं।
  •  कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं।
  •  मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
  •  इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरम्भ होती है।

गुडी कैसे लगाते है और उसका वर्णन:

इस दिन महाराष्ट्र में लोग गुड़ी लगाते हैं, इसीलिए यह पर्व गुडी पडवा कहलाता है।
 
एक बाँस लेकर उसके ऊपर चांदी, तांबे या पीतल का उलटा कलश रखा जाता है और सुन्दर कपड़े से इसे सजाया जाता है। आम तौर पर यह कपड़ा केसरिया रंग का और रेशम का होता है। फिर गुड़ी को गाठी, नीम की पत्तियों, आम की डंठल और लाल फूलों से सजाया जाता है।
 
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गुड़ी को किसी ऊँचे स्थान जैसे कि घर की छत पर लगाया जाता है, ताकि उसे दूर से भी देखा जा सके। कई लोग इसे घर के मुख्य दरवाज़े या खिड़कियों पर भी लगाते हैं।

गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है?

गुड़ी पड़वा लुसीसोलर हिंदू कैलेंडर के अनुसार नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह महाराष्ट्र और भारत के अन्य हिस्सों में नए साल के दिन के रूप में मनाया जाता है।
 
यह रावण पर भगवान राम की जीत का भी प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद जब वह अयोध्या लौटे तो भगवान राम के राज्याभिषेक का उत्सव मनाया गया। इसलिए, गुड़ी जीत का प्रतीक है और हमेशा उच्च आयोजित किया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि, गुडी बुराई से दूर रहती है और घर में समृद्धि और सौभाग्य को आमंत्रित करती है। यह घर के मुख्य द्वार के दाईं ओर स्थित है क्योंकि दाहिनी ओर, एक आत्मा की सक्रिय स्थिति का प्रतीक है।
 
यह त्योहार महान मराठा राजा, शिवाजी महाराजा के सम्मान के लिए भी मनाया जाता है, जिनका भारत के पूरे पश्चिमी भाग में बहुत बड़ा साम्राज्य फैला हुआ था। गुड़ी विजय और उत्सव का प्रतीक है और ज्यादातर सेना में एक ध्वज के समान होता है।
 
गुड़ी पड़वा को फसल उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। यह एक कृषि फसल के अंत और एक नई शुरुआत की निशानी है। इस संदर्भ में, गुड़ी पड़वा से पता चलता है कि रबी की फसल मौसम के लिए समाप्त हो गई है। यह वह समय होता है जब आम और फल काटे जाते हैं। मौसमी मोर्चे पर, गुड़ी पड़वा वसंत के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।
 
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इस त्योहार को मनाने का एक और कारण है। सभी हिंदुओं द्वारा यह माना जाता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड का निर्माण किया था। एक हिंदू कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने संसार को विनाश से बचाने के लिए इस शुभ दिन मत्स्य का अवतार या मछली का रूप धारण किया।

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गुड़ी पड़वा मनाने की विधि-

 
1.   प्रातःकाल स्नान आदि के बाद गुड़ी को सजाया जाता है।       
a.  लोग घरों की सफ़ाई करते हैं गाँवों में गोबर से घरों को लीपा जाता है।
b. शास्त्रों के अनुसार इस दिन अरुणोदय काल के समय अभ्यंग स्नान अवश्य करना चाहिए।
c.  सूर्योदय के तुरन्त बाद गुड़ी की पूजा का विधान है, इसमें अधिक   देरी नहीं करनी चाहिए।
2. चटख रंगों से सुन्दर रंगोली बनाई जाती है और ताज़े फूलों से घर को सजाते हैं।

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3.  नए  सुन्दर कपड़े पहनकर लोग तैयार हो जाते हैं। आम तौर पर  मराठी महिलाएँ इस दिन नौवारी (9 गज लंबी साड़ीपहनती हैं और   पुरुष केसरिया या लाल पगड़ी के साथ कुर्तापजामा या धोतीकुर्ता पहनते हैं।
4.   परिजन इस पर्व को इकट्ठे होकर मनाते हैं  एकदूसरे को नव     संवत्सर की बधाई देते हैं।
5.   इस दिन नए वर्ष का भविष्यफल सुननेसुनाने की भी परम्परा है। 
 
6.   पारम्परिक तौर पर मीठे नीम की पत्तियाँ प्रसाद के तौर पर खाकर इस त्यौहार को मनाने की शुरुआत की जाती हैआम तौर पर इस दिन    मीठे नीम की पत्तियों,गुड़ और इमली की चटनी बनायी जाती है। ऐसा माना   जाता है कि इससे रक्त साफ़ होता है और शरीर की   प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसका स्वाद यह भी दिखाता है कि   चटनी की ही तरह जीवन भी खट्टामीठा होता है। 
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7.   गुड़ी पड़वा पर श्रीखण्डपूरन पोळीखीर आदि पकवान बनाए   जाते हैं।
8.   शाम के समय लोग लेज़िम नामक पारम्परिक नृत्य भी करते हैं।
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गुड़ी पड़वा के पूजन-मंत्र:

गुडी पडवा पर पूजा के लिए आगे दिए हुए मंत्र पढ़े जा सकते हैं। कुछ लोग इस दिन व्रतउपवास भी करते हैं।

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प्रातः व्रत संकल्प:

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रःअमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजः श्रीब्रह्मणःप्रसादाय व्रतं करिष्ये।

शोडषोपचार पूजा संकल्प:

ॐ विष्णुः विष्णुः विष्णुः, अद्य ब्रह्मणो वयसः परार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे अमुकनामसंवत्सरे चैत्रशुक्ल प्रतिपदि अमुकवासरे अमुकगोत्रःअमुकनामाऽहं प्रारभमाणस्य नववर्षस्यास्य प्रथमदिवसे विश्वसृजो भगवतः श्रीब्रह्मणः षोडशोपचारैः पूजनं करिष्ये।

पूजा के बाद व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस मंत्र का जाप करना चाहिए

ॐ चतुर्भिर्वदनैः वेदान् चतुरो भावयन् शुभान्। ब्रह्मा मे जगतां स्रष्टा हृदये शाश्वतं वसेत्।।

 

गुड़ी कैसे लगाएँ:

  1. जिस स्थान पर गुड़ी लगानी हो, उसे भलीभांति साफ़ कर लेना चाहिए।
  2. उस जगह को पवित्र करने के लिए पहले स्वस्तिक चिह्न बनाएँ।
  3. स्वस्तिक के केन्द्र में हल्दी और कुमकुम अर्पण करें।
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गुड़ी का महत्व:

 
गुड़ी पड़वा से अनेक चीज़े जुड़ी हुई हैं। आइए, देखते हैं उनमें से कुछ विशेष को
  1. सम्राट शालिवाहन द्वारा शकों को पराजित करने की ख़ुशी में लोगों ने घरों पर गुड़ी को लगाया था।
  2. कुछ लोग छत्रपति शिवाजी की विजय को याद करने के लिए भी गुड़ी लगाते हैं।
  3. यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने इस दिन ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए गुड़ी को ब्रह्मध्वज भी माना जाता है। इसे इन्द्रध्वज के नाम से भी जाना जाता है।
  4. भगवान राम द्वारा 14 वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या वापस आने की याद में भी कुछ लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते हैं।
  5. माना जाता है कि गुड़ी लगाने से घर में समृद्धि आती है।
  6. गुड़ी को धर्मध्वज भी कहते हैं; अतः इसके हर हिस्से का अपना विशिष्ट अर्थ हैउलटा पात्र सिर को दर्शाता है जबकि दण्ड मेरुदण्ड का प्रतिनिधित्व करता है।
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  7. किसान रबी की फ़सल की कटाई के बाद पुनः बुवाई करने की ख़ुशी में इस त्यौहार को मनाते हैं। अच्छी फसल की कामना के लिए इस दिन वे खेतों को जोतते भी हैं।
  8. हिन्दुओं में पूरे वर्ष के दौरान साढ़े तीन मुहूर्त बहुत शुभ माने जाते हैं। ये साढ़े तीन मुहूर्त हैंगुड़ी पड़वा, अक्षय तृतीया, दशहरा और दीवाली को आधा मुहूर्त माना जाता है।
  9. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, दिन, महीने और वर्ष की गणना करते हुए पंचांगकी रचना भी इसी दिन की थी।
 

आशा करता हूँ दोस्तों.. नव वर्ष गुडी पाडवा से सम्बंधित उपरोक्त जानकारी आपको पसंद आई होंगी अपने परिवारजनों, दोस्तों और संबंधियों  के साथ जरुर शेयर करे ! 😊

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